भगवान महेश्वर के मध्य नेत्र में रहने वाले अग्नि की महत्ता तो सबको ज्ञात है।
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‘‘ मेरे तीन नेत्रों में सूर्य दाहिने चंद्र वाम नेत्र तथा अग्नि मध्य नेत्र हैं।
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भगवान महेश्वर के मध्य नेत्र में रहने वाले अग्नि की महत्ता तो सबको ज्ञात है।
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पुष्प देख वह मन्द-मन्द मुसकाती है चहुँ ओर मधुर समीर बही मद-मस्त बाग बौराय गये सब प्रकृति-सुन्दरी देख-देख सुन्दरता पर बौराय गये कोयल की गूंजे कुहूँ-कुहूँ भँवरें का गंुजन जारी है सांरग का कलरव गूंज रहा स्वर पर लय भी भारी है नभ में हैं खुशियों के बादल थल में पवन-बसन्ती नाच रही सबका मन पुलकित हो जाये भिन्न-भिन्न सुर साज रहीं कुछ कुटिल कंटकों के मध्य नेत्र ‘सुमन ' ने खोल दिये साहस भर कर मुस्कान भरी 'मनमथ'ने निज पट खोल दिये यह मास बसन्ती-अलबेला लाता है ‘मन-भर खुशियाँ सुख-रंग-बसन्ती रंग डालो “भारती” मन भर-भर खुशियाँ (एस0 आर0 भारती)